अपनी किताब ‘Surely You are Joking Mr Feynman’ में भौतिक विज्ञानी, और नोबेल पुरस्कार विजेता, रिचर्ड फ़ाईनमेन, यह कहानी सुनाते हैं: जब वे लगभग 12 वर्ष के थे उन्होंने रेडियो ठीक करने शुरू किये. एक बार उन्हें एक ऐसा रेडियो ठीक करने को कहा गया जो ऑन होते ही कुछ मिनटों तक कर्कश शोर करता और उसके बाद ही उसमें मधुर संगीत बजता. शुरू का कर्कश शोर रेडियो सुनने का सारा मज़ा किरकिरा कर देता.
फ़ाईनमेन ने समस्या के बारे में कुछ देर सोच यह निष्कर्ष निकाला कि रेडियो के अंदर के वाल्व गलत क्रम में गर्म हो रहे हैं. पहले एम्पलीफायर का वाल्व गर्म हो रहा है और तीव्र ध्वनि उत्पन्न कर रहा है क्योंकि अभी ट्यूनर का वाल्व गर्म नहीं हुआ है इसलिए रेडियो कोई स्टेशन नहीं पकड़ रहा है।
फ़ाईनमेन ने दोनों वाल्व की अदला बदली कर दी – की पहले ट्यूनर का वाल्व गर्म हो ताकि जब तक एम्पलीफायर वाल्व गर्म हो तबतक रेडियो किसी चैनल में ट्यून हो चुका हो. अब जब रेडियो को ऑन करो तो पहले कुछ मिनट वो शान्त रहता और फिर उसमें मधुर गाने बजने लगते.
रेडियो के अंदर के इन वाल्व की तरह हम मनुष्यों के अंदर भी तीन वाल्व होते हैं – पाने की चाह का वाल्व (to have), करने की चाह का वाल्व (to do), और सार्थक, आनंदपूर्ण जीवन जीने की चाह का वाल्व (to be).
पाने की चाह का वाल्व हमें ज़्यादा बैंक बैलेंस, अगली बड़ी गाड़ी और अगला बड़ा घर जोड़ने के लिए उकसाता है. सबसे पहले हमारे अंदर यह वाल्व जलता है और सामाजिक प्रतिष्ठ्ता पाने के लिए हम धन और भिन्न वस्तुएं जुटाना चाहते हैं.
पैसा और चीज़ें जुटाने के लिए हमारे अंदर फिर काम करने की चाह का वाल्व जल उठता है और हम रोज़गार या कोई व्यवसाय शुरू कर देते हैं. हम अपने से कहते हैं कि पहले हम काम करेंगे जिसको करके हमें बहुत सारा धन और वस्तुएं प्राप्त होंगी और फिर जब यह सब एकत्रित हो जायेगा तब हम अपने जीवन की सार्थकता और आत्म-जागरूकता (meaning, purpose and self-awareness) पर गौर करेंगे.
हमें सोचना चाहिए कि हमारे अंदर के ये तीन वाल्व जिस क्रम से उज्जवलित हो रहें हैं – सबसे पहले पाने की चाह का वाल्व, फिर पाने की चाह को पूर्ण करने के लिए काम करने की चाह का वाल्व, और अंत में अपने जीवन को सार्थक बनाने की चाह का वाल्व – क्या यह क्रम हमारे जीवन को आनंदपूर्ण बना रहा है, या क्या इससे हम चिंतित, और तनाव ग्रस्त हो रहे हैं? इस क्रम का अनुसरण करने से हमारा जीवन कर्कश शोर करने वाले रेडियो सा तो नहीं बनता जा रहा?
क्या हमें सबसे पहले अपने भीतर अपने जीवन को सार्थक और आनंदपूर्ण बनाने की चाह के वाल्व को उज्जवलित नहीं करना चाहिए ताकि हम ज़्यादा आत्म-जागरूक बन सकें? ऐसा करने से क्या हम पाने की चाह और करने की चाह के बेहतर विकल्प नहीं चुनेंगे? ऐसे विकल्प जो हममें बाध्यकारी व्यवहार और मजबूर करने वाली आदतें न विकसित करें. हम पैसा और चीज़ें जोड़ें पर इस तरह से की पर्यावरण को हानी न पहुँचे और अन्य मनुष्यों, जीवों और हम सभी की आने वाली पीढ़ियों के लिए भी पर्याप्त संसाधन बनें रहें.
इस बात पर विचार कीजियेगा की आप अपने जीवन के ये तीन वाल्व किस क्रम से प्रज्वलित करना चाहते हैं?