आज नौकरी की परिभाषा और कार्य का स्वरूप बदल रहा है. एक नयी वैश्विक अर्थव्यवस्था उभर रही है जिसको नाम दिया जा रहा है ‘गिग’ इकॉनमी – फ्रीलान्स, प्रोजेक्ट आधारित काम करने की विधि. गिग इकॉनमी में आपकी सफलता निर्भर है आपकी विशिष्ठ निपुणता पर. यह हो सकती है आपकी असाधारण प्रतिभा, गहरा अनुभव, विशेषज्ञ ज्ञान या कौशल.
20वीं सदी के पहले कुछ दशकों में, भारत के एक युवा महानगर निवासी को यदि सरकारी नौकरी मिल जाती तो लोग कहते, “अरे, उस सौभाग्यशाली को तो सरकारी नौकरी मिल गयी, उसकी तो ज़िन्दगी बन गयी!” तब सुगम जीवन का रास्ता था ग्रेजुएशन तक पड़ना और फिर किसी सरकारी नौकरी में लग जाना, या सरकारी नौकरी न मिली तो किसी अच्छी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करना. ऐसी नौकरी मिल जाने पर अधिकतर लोग एक ही संस्था में आजीवन काम करते और रिटायर होने पर पेंशन और प्रोविडेंट फण्ड से बची ज़िन्दगी गुजारते.
20वीं सदी के आखरी कुछ दशकों में तस्वीर बदली. एक युवा महानगर निवासी के सौभाग्यशाली होने की परिभाषा हुई किसी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी मिलना. ‘पहले पढ़ाई ख़त्म करना और फिर नौकरी करना’, यह नक्शा भी बदला. तरक्की के लिए पुनःप्रशिक्षण (re-training) अनिवार्य बन गया. चाहे वो सेमीनारऔर कांफ्रेंस में जाना हो, या कार्यकारी पाठ्यक्रम (executive courses) में भाग लेना, या अध्ययन-प्रोत्साहन अवकाश (sabbatical) लेना. लोग अब आजीवन एक ही नौकरी नहीं करते और अपने कामकाजी जीवन में दो तीन नौकरियां तो बदल ही लेते.
नौकरी की परिभाषा आज फिर बदल रही है. पहले नौकरी का मतलब समझा जाता था ‘सेवा’ – एक व्यक्ति कुछ सेवा प्रदान करने के योग्य है और यह सेवा प्रदान करने के लिए उसे एक संस्था वेतन देती है. आज हमारा मानना है की नौकरी एक व्यक्ति की ‘मूल्य-संवर्धन’ (value-add) करने की क्षमता है. किसी उत्पाद (product) या सर्विस में एक व्यक्ति कितना मूल्य-संवर्धन (value-addition) कर सकता है, उसकी इस क्षमता पर उसे अदायगी मिलती है. यह अदायगी फीस, वेतन, बोनस, लाभ-साझेदारी, या कंपनी की शेयर्स हो सकती है.
मान लिया जाये कुछ उद्यमकर्त्ता मिलकर एक IT कंपनी शुरू करते हैं, जिसमे वो बैंकों के लिए एक सॉफ्टवेयर बनाने का प्रयोजन रखते हैं. आपके पास बैंकिंग का अनुभव और ख़ास जानकारी है. आप अपना अनुभव और बैंकिंग का ज्ञान इस IT कंपनी को पेश कर सकते हैं और अगर उन्हें लगेगा कि आपकी यह निपुणता उनको बेहतर सॉफ्टवेयर बनाने में सहायता देगी तो वो आपको आपकी निपुणता के अनुरूप अदायगी का प्रस्ताव रखेंगे. फिर आप इस अदायगी पर खरीद-फरोख्त (negotiation) कर उसे और बेहतर बना सकते हैं.
आज आपका विशेषज्ञ ज्ञान, प्रतिभा, कौशल और अनुभव आधार हैं आपकी मूल्य-संवर्धन क्षमता के. आज की अर्थव्यवस्था में सफलता के लिए आप एक निष्क्रिय नौकरी साधक (passive job seeker) नहीं बने रह सकते, आपको तो अपनी नौकरी का आविष्कार खुद करना है! इसके लिए आपको आपको आना चाहिये अपने ज्ञान, प्रतिभा, कौशल या अनुभव को सुन्दर पैकेज कर, इसकी तिजारत (marketing) करना.
अच्छी खबर यह है कि अगर आज आपके पास कोई असाधारण ज्ञान, प्रतिभा या कौशल है, तो आप उसको ऑनलाइन दुनिया भर में मार्किट कर सकते हैं. आपकी निपुणता की मांग जहाँ कहीं भी हो आज यह मुमकिन है कि आप इस मांग की पूर्ति घर बैठे कर दें. कई वेबसाइट और ऑनलाइन प्लेटफार्म अब उपलब्ध हैं जो एक निपुणता के खरीदारों और विक्रेताओं को संग्रहित करते हैं.
अगर आप दस्तकार हैं तो आप Etsy website में अपनी उत्कृष्ट कृतियों बेच सकते हैं. अगर आप चित्रकार, डिज़ाइनर या एनिमेटर हैं तो आप Fiverr में दुनिया भर से फ्रीलान्स काम ले सकते हैं. अगर आप कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में निपुण हैं तो आप Upwork में प्रोजेक्ट्स ढूंढ सकते हैं. फिल्म बनाने का शौक रखते हैं तो 90 seconds website में खरीदार ढूँढिये. अगर आपकी आवाज़ में जादू है तो Voice123 website में वॉइसओवर का काम उपलप्ध है.
अगर आप एक उत्साही इंजीनियर हैं जिसको इंजीनियरिंग की जटिल समस्याएं सुलझाने में आनंद आता है, तो आज कई कंपनियां अपनी इंजीनियरिंग समस्याओं को ऑनलाइन डाल देती हैं और सुलझाने वाले को अच्छा इनाम देती हैं, और इससे जो प्रतिष्ठा मिलती है वो अलग. आज के दिन प्रतिष्ठा ज़्यादा कमाने का आधार बन गयी है.
यह केवल कुछ उदाहरण हैं. आज कई और ऑनलाइन प्लेटफार्म हैं जो भिन्न प्रकार के ज्ञान, प्रतिभा और कौशल की खंडित मांग को संग्रहित कर उस ज्ञान, प्रतिभा और कौशल की वैश्विक मार्किट बन गए हैं जहाँ क्रेता और विक्रेता एक दूसरे से मिल सौदा कर सकते हैं. भुगतान ऑनलाइन बैंकिंग से होता है और क्रेता और विक्रेता धोखा नहीं देते क्योंकि दोनों की साख (reputation) डाव पर होती है. हर सौदे के बाद क्रेता और विक्रेता दोनों ही दूसरी पार्टी का मूल्यांकन कर सकते हैं. अगर उनकी reputation पर दाग लगा तो क्रेता का आगे कोई काम करने को तैयार नहीं होगा और विक्रेता को कोई काम देने को.
स्व-नियोजित व्यक्ति और अति-लघु उद्योग पहले केवल स्थानीय मांग पर निर्भर थे. उनके पास मार्केटिंग करने के लिए पूँजी नहीं थी और उनकी विशेष निपुणता, जैसे हस्तकला, की मांग बहुत खंडित थी. वे केवल मौखिक प्रचार पर निर्भर थे या किसी बिचौलिये पर. दलाल अनभिज्ञ शिल्पकारों का शोषण भी करते थे. पर आज एक व्यक्ति या अति-लघु उद्योग, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के ज़रिये, अपनी प्रतिभा दुनिया भर में बेच सकता है. ये प्रतिभा परंपरागत कला हो सकती है या नवीनतम कौशल, जैसे 3D एनीमेशन.
अगर आप इस नयी अर्थव्यवस्था का फायदा लेना चाहते हैं तो आपको ऐसी निपुणता को विकसित करने पर ध्यान देना होगा.