हमेशा से हम मनुष्यों का ऐसा प्रयास रहा है की हम अपने बाहुबल (muscle power) को बढ़ायें ताकी हम ज़्यादा और भारी काम करने के सक्षम हों. अपना बाहुबल बढ़ाने के लिए हम मनुष्यों ने सबसे पहले पत्थर और धातु के सरल औज़ार बनाये, फिर हमनें जानवरों को पालतू बना उनकी शक्ति का इस्तेमाल करना सीखा, जैसे सामान ढोने के लिए बैल-गाड़ी या घोड़ा-गाड़ी का प्रयोग. फिर भाप की शक्ति का इस्तेमाल कर हमनें बहुत भारी काम करने शुरू किये जैसे भाप-चलित रेल. भाप की शक्ति को अपने वश में करना कारण बना पहली औद्योगिक क्रांति का.
जब-जब किसी नयी खोज या आविष्कार ने हम मनुष्यों के बाहुबल में काफी अधिक वृद्धि की, तब-तब वैश्विक अर्थव्यवस्था का ढांचा बदला. हर बार, उभरती हुई नयी आर्थिक परिस्थियों में सफल होने के लिए नए कौशल सीखना अनिवार्य था. उदाहरणतः पहली औद्योगिक क्रांति ने कृषि-प्रधान वैश्विक अर्थव्यवस्था को उद्योग-प्रधान अर्थव्यवस्था में परिवर्तित कर दिया. बदलती परिस्थितियों में जो किसान या तो नए कौशल सीख पाये या जो अपने खेतों को मशीनीकृत कर पाये, वे ही आर्थिक रूप से सफल हुए.
बिजली की खोज ने औद्योगिकीकरण की दूसरी लहर शुरू की और इससे आये ऑटोमेशन और बड़े पैमाने पर उत्पादन (mass production) कारण बने सेवा क्षेत्र (services sector) के उदय के. अब तक वो नौकरियाँ जिनमें मानसिक या संज्ञानात्मक कौशल (cognitive skills) की ज़रुरत थी वो सुरक्षित मानी जाती थीं क्योंकि मशीनें ऐसे काम करने में असमर्थ थीं.
सूचना प्रौद्योगिकी (information technology) और कंप्यूटर, कारक बने तीसरी औद्योगिक क्रांति के और इस क्रांति ने ज्ञान की मात्रा में अत्यधिक वृद्धि ला दी. ज्ञान-केंद्रित अर्थव्यवस्था (knowledge-based economy) में सफलता के लिए किसी एक ज्ञान-क्षेत्र में विषेष्यग्यता हासिल करना अनिवार्य हो गया. यह विषेष्यग्यता आमतौर पर विश्वविद्यालय की डिग्री या कौशल-आधारित डिप्लोमा का रूप लेती.
फिर 20वीं सदी के अंत में एक बड़ा बदलाव आया. कंप्यूटर और अधिक शक्तिशाली और सस्ते हो गए. पुराने मेनफ्रेम कंप्यूटर की तुलना में अब एक आम मोबाइल फोन में अधिक कंप्यूटिंग शक्ति विद्यमान थी. मशीनें जो अभी तक मनुष्य के बाहुबल को बढ़ा रही थीं, उन्होंने अब मानव के मस्तिष्क बल को बढ़ाना और प्रतिस्थापित करना शुरू कर दिया.
21वीं शताब्दी के दूसरे दशक में आज, भौतिक (physical), जैविक (biological), और डिजिटल technologies का सम्मिलन (convergence) शुरू हो गया है. इस सम्मिलन को चौथी औद्योगिक क्रांति कहा जा रहा है.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स, स्वायत्त वाहन (autonomous vehicles), संवर्धित वास्तविकता (augmented reality), 3-D प्रिंटिंग, बिग डेटा, नैनो-टेक्नोलॉजी, बायो-टेक्नोलॉजी और आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य पदार्थ (genetically modified food), दुनिया को नया रूप दे रहे हैं.
कृत्रिम रूप से बुद्धिमान मशीनें तेज़ी से उच्चतर संज्ञानात्मक कार्य करने में सक्षम हो रही हैं और पुनरावर्ती आधारित आत्म-निर्देशन (recursive self-learning), जिसको मशीन लर्निंग कहते हैं, के माध्यम से लगातार अपने प्रदर्शन में सुधार कर रही हैं. अगर आज किसी काम को कलन-विधि (algorithm) पर आधारित किया जा सकता है तो निश्चित ही उस काम को कृत्रिम बुद्धिमता वाली मशीनें मनुष्य से बेहतर करने के योग्य हैं.
प्रश्न उठता है कि चौथी औद्योगिक क्रांति का रोज़गार पर क्या असर पड़ेगा? भविष्य में किस तरह की नौकरियां होंगी? या कोइ नौकरी बचेगी भी की नहीं? किस किस्म के कौशल आपकी नियोजनीयता में चार चाँद लगायेंगे? इन सभी मुद्दों पर एक सरसरी नज़र डालते हैं.
वेंडिंग मशीन, ए.टी.एम, हवाई अड्डे पर स्वयं-चेक-इन कियोस्क, दुकानों में स्वयं-सेवा भुगतान, योग्य रेडियोलॉजिस्ट से ज़्यादा बेहतर एक्स-रे छवियों का विश्लेषण करती कृत्रिम बुद्धिमान मशीनें, कंप्यूटर द्वारा प्रतिस्थापित किये जा रहे सहायक-वकील (paralegals), गोदामों में स्वचालित रोबोट और सड़क पर चालक-रहित गाड़ियां. यह सब जब चौथी औद्योगिक क्रांति अभी अपनी शैशविक अवस्था में है! क्या प्रौद्योगिकी सभी नौकरियों को ख़त्म कर देगी?
ड्रोन ऑपरेटर, ई-स्पोर्ट्स कमेंटेटर, सोशल मीडिया रिपोर्टर, content क्यूरेटर, 3D फैब्रीकेटर, वर्चुअल रियलिटी डिज़ाइनर, बिग डाटा विश्लेषक, सिटिज़न साइंटिस्ट, सस्टेनेबल ऊर्जा प्रवर्तक, ब्लॉक चैन ऑडिटर, इन्टरनेट ऑफ़ थिंग्स विषेयज्ञ, रोबोट मरम्मत कारीगर, बिट कॉइन व्यापारी, अंतरिष्क भ्रमण गाइड… क्या प्रौद्योगिकी कई नई और रचनात्मक नौकरियाँ उत्पन्न करेगी?
कल्पना कीजिए, आप पानी गर्म कर रहे हैं और एक छोटी बच्ची पानी में रखे थर्मामीटर को देख रही है. जैसे-जैसे पानी गर्म होता है, थर्मामीटर का पारा बढ़ता जाता है: 30°C, 40°C, 50°C, 80°C. आप उस छोटी बच्ची से पूछते हैं कि आगे क्या होगा? पहली बार पानी गर्म होता देख प्रेक्षक के रूप में, लाज़िम है वो कहेगी की पानी और ज़्यादा गर्म होता जायेगा. वो अनुमान नहीं लगा सकती कि 100°C पर पानी भाप बन जायेगा, जिसको चरण प्रतिवर्तन (phase change) कहते हैं, जब पदार्थ की अवस्था बदल जाती है और द्रव्य (liquid) गैस में परिवर्तित हो जाता है.
आने वाले भविष्य के संधर्ब में हम उस छोटी बच्ची की तरह हैं हो कल्पना भी नहीं कर सकते कि आगे होने क्या वाला है. भविष्य अस्पष्ट, अस्थिर, अनिश्चित, और जटिल है, जिसको अंग्रेजी में VUCA future कहते हैं – volatile, uncertain, complex, and ambiguous.
क्या रोबोट और कृत्रिम बुद्धिमता मशीनों का उदय और इनका परिणाम, भारत में उसी समान होगा जैसा तकनीकी रूप से उन्नत देशों में हो रहा है? भारत की 90% से अधिक आबादी या तो स्वयं-नियोजित या असंगठित क्षेत्र में काम करती है. 2010 में एकत्रित आंकड़ों के अनुसार, भारत में 46 करोड़ कार्यरत लोगों में से 50% कृषि क्षेत्र में काम करते हैं, 11% विनिर्माण क्षेत्र में और 25% सेवा क्षेत्र में. चौथी औद्योगिक क्रांति का कृषि में कार्यरत लोगों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? क्या ऑनलाइन शॉपिंग और शॉपिंग मॉल में लगी स्वयं-सेवा भुगतान मशीनें रिटेल क्षेत्र में बड़े पैमाने में बेरोज़गारी का कारण बनेंगी?
अगर ऐसा होता है तो भारत के लिए कई परेशानियां खड़ी हो सकती हैं क्योंकि भारत की दो-तिहाई जनसँख्या 35 से कम उम्र की है और हर महीने 3.5 करोड़ युवा अपनी 18वीं सालगिरह मनाते हैं. ये सभी एक अच्छी नौकरी पाने के उत्सुक हैं. अगर भविष्य में इनके लिए नौकरियाँ नहीं रहीं तो भारत में सामाजिक अशांति फैल सकती है. युवा आबादी भारत के भविष्य के लिए या तो अत्यंत लाभदायक, या एक टाइम बम सिद्ध हो सकती है.
अच्छी खबर यह है कि उभरती प्रौद्योगिकी के कारण नौकरियां ख़त्म नहीं हो रहीं, इनका स्वरूप बदल रहा है. इस लेख के अगले भाग में हम देखेंगे कि किस किस्म की नयी नौकरियों उभर रही हैं और इन्हें पाने के लिए किस किस्म के नए कौशल सीखना अनिवार्य होता जा रहा है.