कुछ साल पहले मेरे बेटे को अपने स्कूल से एक दस्तावेज़ मिला जिसमे विषयों की एक सूची थी. जी.सी.एस.सी. परीक्षा (class 10 Board exam के बराबर) के लिए उसे इस सूची से कुछ विषय चुनने थे. मैंने उससे पूछा कि दिए हुए विकल्पों में किस आधार या मानकों पर वह निर्धारित करेगा कि कौनसा विषय ले? पलक झपकते ही उसने जवाब दिया, “जो विषय मुझे पसंद हैं और जिन विषयों में मैं अच्छा हूँ.”
उसके मानकों से मैं सहमत था और मैंने सुझाव दिया कि इनके अलावा एक और मानक भी है जिसको उसे ध्यान मैं रखना चाहिए. इस तीसरे मानक के तीन पहलु हैं:
निकट भविष्य के लिए उसे ध्यान में रखना चाहिए कि विश्वविद्यालय में उसे किस विषय का अध्ध्यन करना है? होशियारी इसी में है कि वह उन विषयों का चयन करे जो उस विषविद्यालय कि उपाधि (degree) के लिए अनिवार्य हैं.
यह बात ज़रूर है कि अब ऐसे विकल्प उभर रहे हैं, जैसे ऑनलाइन पाठ्यक्रम ‘मूक’ (MOOC – Massive Open Online Course), जिनकी सहायता से शिक्षार्थी विश्वविद्यालय जाए बिना एक विषय में गहरी जानकारी और विकल्प उपाधि (qualification) पा सकता है. अगर एक विद्यार्थी भारी कर्ज़ा लेकर विश्वविद्यालय कि उपाधि ले रहा है तो उसे इन विकल्पों का पता लगाना चाहिए.
विश्वविद्यालय में वो क्या विषय चुने इसका मुख्य मानक होना चाहिए उस विषय में उसकी गहरी रूचि. पर व्याहवारिक होते हुए उसे थोड़ा यह भी सोच लेना चाहिए कि मध्यम अवधि, यानि कुछ दशकों में, कौनसे विषय रोज़गार या उद्यम ज़्यादा अवसर प्रदान करने की सम्भावना रखते हैं. जिस प्रकार स्वचालित बुद्धिमान मशीनें, कम्प्यूटरीकरण, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एवं और ऐसी प्रौद्योगिकी प्रवृत्तियाँ उभर रहीं हैं भविष्य की अर्थव्यवस्था में बदलाव निश्चित है और बदलती हुई अर्थव्यवस्था में रोज़गार एवं उद्यम में बदलाव भी स्वाभाविक ही है. इस कारण कुछ विषयों का अध्यन और उनमें गहरा ज्ञान होना एक व्यक्ति की नियोजनीयता को ज़्यादा बेहतर बना देता है.
स्कूल से जो दस्तावेज मेरे बेटे को मिला था उसमें विश्वविद्यालय की भिन्न उपाधियों की सूची भी थी. हमने हर उपाधि (degree) को देखा और चर्चा की कि वह उपाधि आगे चलकर कौनसे व्यवसाय में प्रवेश संभव करती है. मैंने अपने बेटे को इस बात पर भी आगाह किया कि तकनीकी उन्नति और बदलती अर्थव्यवस्था आज के बहुत सारे व्यवसायों को निकट भविष्य में लुप्त कर देगी. पर साथ ही ऐसा भी है कि कई सारे नवीन व्यवसाय भी उभरेंगे जिनकी आज हम कल्पना भी नहीं कर सकते.
मेरे सुझाये तीसरे मानक का एक दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य भी है – ‘अपनी क्षमता अनुसार अपने जीवन में कुछ उल्लेखनीय करने का ढृढ़ संकल्प’.
आजकल अधिकतर लोग केवल पैसा कमाने के लिए ही पड़ते हैं. विश्वविद्यालय की उपाधि का चयन भविष्य में अधिक वेतन कमाने कि क्षमता पर ज़्यादा और उस विषय में कितनी रूचि है इस बात पर कम निर्भर होता है. मैंने अपने बेटे को सलाह दी कि सामाजिक सफलता पर ध्यान न देते हुए उसे इस बात पर ज़्यादा गौर करना चाहिए कि आज की कौनसी ऐसी जटिल समस्या है जिसको सुलझाने में उसकी बहुत रूचि है या हो सकती है. यह जटिल समस्या कोई भी हो सकती है – पर्यावरण सम्बंधित, किसी बिमारी का इलाज, सामाजिक या आर्थिक मुद्दे से जुड़ी, या फिर मानव कल्याण या चेतना से सम्बंधित.
अपनी किताब ‘गुड तू ग्रेट’ में लेखक जिम कॉलिंस लिखते हैं कि एक कंपनी तब ही सर्वश्रेष्ठ बनती है जब वह यह जान जाती है कि कौनसा ऐसा क्षेत्र है जिसमे वो गहरी विशेषज्ञता रखती है, जिस क्षेत्र में वो इतनी माहिर है कि उस क्षेत्र में संसार में सर्वोत्तम हो सकती है और जहाँ उसे पैसा बनाना भी आता है. यह तीन मानक कंपनियों कि सफलता के लिए ही नहीं परन्तु व्यक्तिगत सफलता के लिए भी लागू हैं.
मेरे बेटे ने अपने विषय चयन के मानकों में ‘गहरी रूचि’ और ‘माहिर होने’ की महत्वता को तो समझ ही लिया था और जब मैं उसे सामाजिक सफलता पर ज़्यादा ध्यान न देने की नसीहत दे रहा था तब मेरा यह मतलब नहीं था कि उसे पैसा नहीं कमाना चाहिए, मेरे कहने का तात्पर्य केवल इतना था कि पैसा कमाना जीवन का एक मात्र लक्ष्य नहीं होना चाहिए.
भविष्य में चाहे मेरा बेटा नौकरी करे, स्वनियोजित बने, या व्यापार करे, या कुछ और पैसा कमाने और सामाजिक सफलता के लिए सबसे ज़रूरी होगा ऐसी सेवा या उत्पाद का सृजन करने कि क्षमता रखना जो बड़ी संख्या में लोगों के लिए उपयोगी साबित हो. इसके लिए उभरती हुई प्रवृत्तियों (emerging trends) का अंदाज़ा लगाने का हुनर आवश्यक है. पैसा वो आदमी कमाता है जिसे उभरती हुई प्रवृत्तियों कि नब्ज़ समझ आती है, बिलकुल वैसे ही जैसे फुटबॉल में गोल वह खिलाड़ी करता है जिसे पता होता है कि गेंद कहाँ जाने वाली है, न कि वह खिलाड़ी जो देख रहा होता है कि गेंद कहाँ है या कहाँ थी!
पर सबसे महत्वपूर्ण है ‘गहरी रूचि’, ‘कौशल’ और ‘पैसा कमाने’ के जो तीन घेरे हैं उनको ‘अपने जीवन में, अपनी क्षमतानुसार, कुछ अविश्वसनीय करने का दृढ़ संकल्प’ के बड़े घेरे में डालना. सफल जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मानक यह तीसरा बड़ा घेरा ही है. बाकी तीन छोटे घेरे इस पर ही आधारित होने चाहिए.
आगे आने वाले सालों में जब मेरा बेटा आत्मविश्लेषण कर रहा होगा कि उसके लिए ‘उल्लेखनीय’ जीवन लक्ष्य क्या है उस अन्वेषण के लिए मेरी शुबकामनाएं और उससे मैं कठोपनिषद् का यह वाक्यांश साझा करना चाहूँगा “उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत” – उठो, जागो, और ध्येय की प्राप्ति तक रूको मत.