ज़िन्दगी का भरपूर आनंद लेने के लिए ज़रूरी है अपने जूनून को पहचानना और उस जूनून को जीना. अलग शब्दों में कहा जाये तो आनंदमय ज़िन्दगी जीने के लिए जोश और उत्साह के साथ-साथ एक दिशा होना भी आवश्यक है.
गणितग्य टेरेंस ताओ मिसाल हैं एक ऐसे व्यक्ति की जिसने अपने जूनून को बहुत जल्द पहचाना और पूरे जोश के साथ उसी दिशा में चलता रहा. टेरेंस जब दो साल का था तो उसने टेलीविज़न पर ‘सेसमी स्ट्रीट’ कार्टून देखकर अपने को अंग्रेजी पड़ना सिखाया. तीन साल की उम्र में वो गणित के समीकरण के सवाल सुलझा रहा था. 7 साल की उम्र में उसने विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और 13 साल में गणित में मास्टर्स डिग्री कर ली. 21 साल में गणित में पीएचडी की उपाधि पायी और 24 साल की उम्र में अमरीका के UCLA विश्वविद्यालय में गणित का प्रोफेसर बन गया. यही नहीं 30 साल की उम्र में उसे फ़ील्ड्स मेडल से सम्मानित किया गया जो कि गणित में नोबल पुरुस्कार के समान है.
पर आप और मैं टेरेंस ताओ नहीं हैं. बचपन में हमने अपने जूनून की भविष्यवाणी नहीं सुनी! तो हमारे सामने सवाल यह है कि हम अपने जूनून को कैसे पहचानें?
कम उम्र के बच्चों का जूनून जानने के लिए सबसे ज़रूरी है कि इस तहकीकात का क्षेत्र बहुत विस्तृत रक्खा जाये. अगर बच्चे को किसी शैक्षिक विषय में गहरी रूचि है तो संभावित है कि उसे अपने विद्यालय में इस रूचि का पता चल जाएगा. परन्तु गैर-शैक्षिक दिलचस्पी को जानना थोड़ा मुश्किल है. अगर स्कूल में सुविधा उपलब्ध हो तो एक तरीका है भिन्न activities या क्लब में हिस्सा लेना. या फिर अगर गैर-शैक्षिक संस्थान आसानी से उपलभ्द हों और बहुत महंगे न हों तो वहां दाखिला लेना.
अभिभावकों के लिए एक चेतावनी! कहते हैं कर्म का फल निर्भर करता है कर्म के पीछे की नीयत पर. आपके अभिभावकीय कर्म तभी अच्छे होंगे जब आप इस इरादे से अपने बच्चों को भिन्न-भिन्न गतिविधियों के लिए प्रोत्साहित करेंगे कि वो खुद को ज़्यादा अच्छा समझ पायें. अगर इस प्रोत्साहन के पीछे आपकी नीयत ये होगी कि आपका बच्चा नृत्य, चित्रकला या शास्त्रीय संगीत इसलिए सीखे क्योंकि पड़ोसी का बच्चा ये सब सीख रहा है और किट्टी पार्टी में आप अपने बच्चों का गुणगान करना चाहते हैं, तो ये आपके कर्म खाते के लिए लाभदायक नहीं सिद्ध होगा!
दूसरी अभिभावकीय कार्मिक चेतावनी! आपको किसी भी जूनून का पक्षपाती नहीं होना चाहिए. आप अपनी धारणानुसार ऐसा नहीं कहेंगे, “तुम क्यों अपना वक्त इस जूनून पर ज़ाया कर रहे हो. इससे तुम्हें कोई नौकरी नहीं मिलने वाली.”
अपना जूनून जानने की तहकीकात का क्षेत्र विस्तृत करने के लिए नये शौक या हॉबी पालना एक और अच्छा तरीका है. आज किसी भी शौक पर ऑनलाइन बहुत जानकारी मिल जाती है इसलिए चाहे आप साधारण हॉबी चुनें या कोई अजीबोगरीब शौक पालें आज दोनों ही चीज़ों के बारे में जानकारी हासिल करना सरल हो गया है.
आत्म-अवलोकन (self-observation) और आत्म-विश्लेषण (self-analysis) के ज़रिये भी आप अपने जूनून को पहचान सकते हैं. जांच के देखिये कि आप कौन से कार्य में इतने लीन हो जाते हैं कि आपको समय का कोई बोध नहीं रहता. मनोवैज्ञानिक मिहाली चिकसतमहाई इस अवस्था को ‘फ्लो’ (flow) कहते हैं – जब आपको कोई कार्य करने में इतना आनंद आ रहा होता है और आप उस कार्य में इतने मगन हो जाते हैं कि आपके लिए समय रुक सा जाता है. एक महीने के लिए आप एक डायरी रख सकते हैं जिसमें आप नोट करते रहें कि आप पूरे दिन क्या कर रहे थे और वो करते हुए आप कितने ‘फ्लो’ में थे. पर्याप्त अवधि के लिए अगर आप अपना ‘फ्लो’ नोट करेंगे तो आपको अपने जूनून का कुघ आभास ज़रूर होने लगेगा.
मेरे अनुभव में अगर आप ये ‘फ्लो’ एक नवयुवा को समझा रहें हैं तो शैतान कह सकता है कि टेलीविज़न देखते हुए उसे समय का कोई आभास नहीं रहता! इसपर आपको उसको धैर्य से समझाना पड़ेगा सृजन (creation) और सेवन (consumption) में फर्क. मात्र उपभोग जीवन-सन्तुष्टि नहीं देता. अगर उसे लगता है कि टेलीविज़न देखने में उसकी अत्यधिक रूचि है तो वह इस रूचि को अपने फायदे में बदल सकता है. वो टेलीविज़न कार्यक्रमों की समझ से आलोचना कर सकता है, या उनसे प्रेरित हो एक अच्छा कहानीकार या अभिनेता बन सकता है. कहने का मतलब है टेलीविज़न देखना भी जूनून जानने का साधन हो सकता है.
माता-पिता, अध्यापक या कोई उस्ताद जो आपको जानता है वो भी आपके जूनून पर टिप्पणी कर सकता है. आपकी योग्यता, मनोभाव और रुचियाँ समझ वो आपका मार्ग दर्शन कर सकता है कि किस क्षेत्र में आपका रुझान और काबिलियत है.
अपना जूनून समझने के लिए आप ये जांच भी कर सकते हैं कि एक व्यवसाय में जीवन का एक दिन कैसा महसूस होता है. आजकल कई कार्यालय साल में एक दिन बच्चों को कार्यालय आने की अनुमति देते हैं (Bring Your Child to Work Day). युवा ऐसे अवसरों का लाभ उठा सकते हैं और एक व्यवसाय की हकीकत का कुछ अंदाज़ा लगाते हुए सोच सकते हैं कि उस व्यवसाय में उनकी कितनी रूचि हो सकती है. पिछले साल मेरी पत्नी हमारे मित्र की बेटी को एक दिन अपने बैंक ले गयी थी ताकि उस किशोरी को कुछ अंदेशा हो कि आखिर बैंकर करते क्या हैं?
अगर संभव हो तो स्कूल की शिक्षा पूर्ण होने पर युवाओं को अवकाश ले घूमना चाहिए – राष्ट्रीय या अंतर-राष्टीर्य भ्रमण, जिसको ‘Gap Year’ कहते हैं. इस दौरान उन्हें स्वयं-सेवी संश्थाओं में अपनी प्रतिभा और समय दान करना चाहिए, या घूमते हुए अलग-अलग तरह के काम करने चाहियें – जो जूनून कि आत्म-खोज में सहायक हों. gapyear.com जैसी संस्थाएं, पैसा ले, इसमें मदद करती हैं परन्तु इस तरह के भ्रमण की योजना खुद भी बनाई जा सकती है.
उमरदार लोगों को अगर जांचना है कि वो जो कर रहे हैं वो उनका जूनून है की नहीं तो उन्हें सोचना चाहिए कि क्या उनका काम उनके लिए मात्र एक नौकरी है, या वो हर सुबह पूरे उत्साह की साथ उठ अपने काम में लीन हो जाते हैं. जैसा पत्थर तोड़ते तीन आदमियों की कहानी में दर्शाया गया है. पहले आदमी से जब पूछा गया कि वो क्या कर रहा है तो वह बड़बड़ाया, “मैं पत्थर तोड़ रहा हूँ.” दूसरा बोला, “अपने परिवार की परवरिश की लिए कुछ पैसा कमा रहा हूँ.” और तीसरे ने उमंग के साथ कहा, “मैं एक भव्य इमारत के निर्माण में जुटा हूँ!”
अगर हम अपने जीवन में अपने जूनून का अनुसरण नहीं कर रहे होते तो उसका कारण ज़्यादातर होता है असफलता का डर, उपहास का डर, या आत्म-विशवास की कमी. हमारे अंदर की आवाज़ कहने लगती है, “मैं अपने मित्र की तुलना में इस कार्य में अच्छा नहीं हूँ इसलिए असफलता तो निश्चित है. और जब मैं असफल हूँगा तो सब मेरा मज़ाक उड़ायेंगे. मुझ पर पीठ पीछे हसेंगे.” ऐसा सोच हम कुछ नया करने से पीछे हट जाते हैं. हमें ज़रुरत है थोड़े गैर-तुलनात्मक या निरपेक्ष आत्म-अवलोकन की.
तो अपने जूनून की तहक़ीक़ात कीजिये और उसे खोज पूरे उत्साह के साथ उसका अनुसरण कीजिये. ऐसा करने से आपको कितनी सामाजिक सफलता मिलेगी यह कहना तो कठिन है मगर आपकी ज़िन्दगी निश्चित परमानन्द में कटेगी!